कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, नम थी आँखें , हम रो भी ना पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, हमने दुआ करी किसी अपने को मौत आए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, लफ़्ज़ तो थे पर कुछ कह ना पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, दूर हुए इतने कि कंधा ना दे पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, दर्द हुआ पर महसूस ना कर पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, जागे ना थे और सो भी ना पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, हम चल ना सके पर ठहर भी ना पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, पंख तो थे पर उड़ ना पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी , सब गँवा के भी उनसे कुछ हासिल ना कर पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, माफ़ ना किया और भुला भी ना पाए। कुछ तो क़र्ज़ चुकाने थे ऐ ज़िंदगी, छलकी पलकें और लफ़्ज़ बह आए।